"कब तक तुम मासूम छ्तों पे
ऐ बादल ना बरसोगे
बरस पड़ो ऐ बादल अब तो
ना बरसे तो तरसोगे ।
तन भी तेरा मन भी तेरा
ताना बाना पानी का
कब तक सबको तरसाओगे
ऐ बादल कब बरसोगे ।
ना तुम धानी चुनरी देते
ना आंचल का सार बढाते
इस धरती के तुकड़े हो तुम
कब तक तुम ना बरसोगे ।
ताल तल्लयां नदियां सूखी
पशु-पक्षी हैरान फिरें
क्या इनकी मासूम परों पे
ऐ बादल ना बरसोगे ।
धरती का तन मीलों सूखा
और पांवों मे बीवाई
क्या वसुधा इन पावों पे
ऐ बादल ना बरसोगे ॥
"दीद" लखनवी